लोगों की राय

सामाजिक >> सब देस पराया

सब देस पराया

गुरदयाल सिंह

प्रकाशक : राधाकृष्ण प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 1996
पृष्ठ :173
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 3804
आईएसबीएन :81-7119-251-3

Like this Hindi book 1 पाठकों को प्रिय

23 पाठक हैं

सब देस पराया पुस्तक का कागजी संस्करण...

Sab Desh Paraya

पुरानी बात

सर्दी की रात। सरसों के तेल के दीये की मद्धिम रोशनी में ताऊ बिशना अपने भतीजे माधी1 को युगों पुरानी एक बात सुना रहा था।
देवताओं और असुरों ने सागर-मंथन किया तो चौदह रत्न निकले। इनमें एक अमृत कुंभ भी था। यह असुर लेकर भाग गए। देवता सहायता के लिए पहले ब्रह्मा जी के पास पहुँचे, परंतु उन्होंने विष्णु जी के पास भेज दिया। विष्णु जी सहायता के लिए मोहिनी रूप धारण कर जब असुरो के सामने आए तो असुर मंत्रमुग्ध हो बोले-हे सुंदरी जो भी निर्णय तुम करो वही हमें स्वीकार होगा। मोहनी ने कहा देखो-अमृत पर सभी का बराबर अधिकार है। सभी मिलकर पान करो। असुर मान गए।
परंतु मोहिनी पहले देवताओं को अमृत पान कराने लगी। तभी देवताओं की शक्ल का एक असुर, चोरी से उनकी पंक्ति में आकर बैठ गया-शायद उसे आभास था कि मोहिनी असुरों को धोखा देगी। जब मोहिनी उसे भी अमृत पान कराने लगी तो असुर के दायें बायें बैठे चाँद, सूरज देवताओं ने उसे पहचान लिया। वे चिल्लाकर बोले-यह तो असुर है। मोहिनी रूप विष्णु ने सुनते ही खंडे से असुर के दो टुकड़े कर दिए। परंतु अमृत पान के कारण असुर के दोनों रूप अमर हो चुके थे।
इसलिए विष्णु ने उन्हें शाप देकर आकाश में स्थित कर दिया। वही दोनों रूप आज तक राहू केतु के नाम से आकाश में स्थित हैं।
------------------------------------------------
1.    बिशना और माघी, लेखक के एक और उपन्यास ‘घर और रास्ता’ के दो पात्र है।


-परन्तु दूसरे असुरों का क्या हुआ ताऊ ?
-अरे उनकी मत पूछ, बहुत धोखा हुआ उनसे। मोहिनी-रूप विष्णु देवताओं के ही तो थे। देवताओं को अमृत-पान कराते ही, जो अमृत बच गया, कुंभ में लेकर बैकुंठ लोक को भाग गए। असुर बेचारे भौचक्के रह गए। बैकुंठ में जा नहीं सकते थे। रह गए खाली हाथ। बस, गालियाँ देते रहे, और क्या !

-क्यों, असुर वहाँ क्यों नहीं जा सकते थे ? कर्फ्यू-ऑर्डर लगा है उनके लिए ?- माघी ने हैरानी से पूछा।
-नहीं जा सकते, नीच समझे जाते हैं न ! वह कहानी कभी फिर सुनाऊँगा, पहले राहु-केतु की बात सुन।.....तो तभी से राहू-केतु तथा चाँद-सूरज का बैर बँध गया। आज तक भी चला आ रहा है। कहते हैं, यह जो चाँद-सूरज को ग्रहण लगता है, उसी बैर के कारण लगता है। जब राहू-केतु को गुस्सा आता है तो वह अपना ‘ऋण’ चुकाने चले आते हैं। कुछ लोग कहते है कि उनके रथों के आगे जुते घोड़े अंधे होने के कारण यह ग्रहण का अँधेरा छा जाता है। कुछ कहते हैं कि उनके आने से सूरज-चाँद के रथों के घोड़े अंधे हो जाते है। इसी कारण ग्रहण के समय उन्हें ऋण से छुटकारा दिलाने के लिए लोग दान करते हैं। और असुरों की जाति को लोग यह ‘अंधे घोड़ों का दान’ लेते हैं। देखा नहीं तूने, ग्रहण के समय यह कैसे शोर मचाते हैं- ‘अन्हें घोड़े का दान बई, अन्हें घोड़े का दान....!’

-तो यह लेन-देन का झगड़ा कब खत्म होगा ताऊ ? या ऐसे ही चलता रहेगा-हमेशा ?
माघी की आवाज की तल्खी भाँपते ही ताऊँ ने ध्यान से उसके चेहरे की ओर देखा तो लगा कि उसकी आँखों में शरारत कम और क्रोध अधिक था। ताऊ को भी गुस्सा आ गया। परन्तु माघी को सीधा, आँखों में आँखें डाले तेज तर्रार नजरों से अपने प्रश्न के उत्तर की प्रतीक्षा करते देखा तो मुस्करा दिया।
-जब तू निपटाएगा, झगड़ा तो तभी निपटेगा, और कौन निपटा पाएगा तेरे बिना ?
ताऊ ने व्यंग्य भरे स्वर में तनिक गुसैला अंश महसूस करते ही माघी उठकर खड़ा हो गया। अचानक उसकी मुट्ठियाँ भिंच गईं और आँखें लाल होने लगीं।

-तो ठीक है ! यह झगड़ा मैं ही निपटाकर दिखाऊँगा तुझे...हाँ ! देखना, अब कैसे निपटाता हूँ !.....
और जब तेरह-चौदह बरस का, छीटका-सा यह छोकरा, एक बाँह आकाश की ओर उठाए, पीठ घुमाकर आँगन में से दूर जा रहा था तो ताऊ किसी अंतरीव संतुष्टि से फिर मुस्कराया; और खुले किवाड़ों के बाहर छाए अंधेरे को घूरने लगा जिसमें माघी घुसा था जैसे गहरे तालाब में छलाँग लगाया करता है।
कोठरी के भीतर आते ही वह किवाड़ सटा, बिना बत्ती जलाए चारपाई पर लेट गया। क्षण-भर बाद किसी के किवाड़ खटखटाने का आभास हुआ तो उच्चकर उठ बैठा और चिल्लाया, ‘‘कौन है ?’’

आँखें गड़ाए एकटक किवाड़ों की ओर घूरता रहा। परन्तु उत्तर नहीं मिला। कच्ची त्रेलियाँ1 आने लगीं। हाथ-पाँव फूलने लगे। दरवाजे की ओर पीठ करके और पैताने सिर रखकर फिर लेट गया। कुछ देर ऐसे ही लेटा रहा। तभी आँखों के पपोटे जलते महसूस हुए। आँखें खोलीं तो वही भयानक परछाईं दीवार पर काँपती नजर आई। यह बिजली की तारों में लटकती एक कटी हुई पतंग की परछाई थी। पतंग गली के खम्बे की बत्ती से इस ओर लटकने के कारण परछाईं, किवाड़ों की दो-डेढ़ अंगुल चौड़ी दरारों में से सामने की दीवार पर पड़ रही थी। यह पतंग कई दिन पहले तारों में उलझकर यहीं अटक गई थी। फिर हवा के झोकों से इसका कागज फटकर उड़ गया। अब केवल काँपें और कहीं-कहीं उनसे चिपका थोड़ा कागज तथा एक मैली-कुचैली रस्सी की पूँछ ही लटकती रह गई थी। (एक महीने से इसका पता होते हुए भी जब इसे देखता, सहम जाता।)
बहुत प्यास लगी थी। उठकर बाहर आ गया। खुले में कोठरी के आगे जो चौका-चूल्हा बना रखा था उसकी छोटी-सी दीवार के पास कोने में पानी की हँडिया रखी थी। उठाकर कंधोली2 पर रखकर उँडेल लिया। चुल्लू से पीने लगा तो कोहनी से बहती पानी की धार पाँवों के तलवों
---------------------------------------------------------
1.त्रेलियाँ- घबराहट में पसीना आना।
2. छोटी दीवार।


तक आ गई। पानी के पाँवों को छूते ही ऐसे उछल पड़ा जैसे तलवे के नीचे साँप दब गया हो। हाथ हिलने से हँडिया नीचे गिरते ही टूट गई। कच्चे चौके में बिखरे पानी से कीचड़ भर गया। कुछ क्षण तो हँडिया के बिखरे ठीकर देखता रहा, फिर सामने खम्भे पर लटकती हुई उसी पतंग की लंबी पूंछ सचमुच साँप की तरह हवा में लहराने लगी है। सहमा-सा धीरे-धीरे वापस लौटकर चारपाई पर लेट गया। इस बार किवाड़ भी बंद नहीं किए। लेटने के बाद उठने की हिम्मत ही नहीं हुई।
जब उसे कभी ऐसा सहम महसूस होता तो ठीक से सो नहीं पाता था।

 आज भी जब थोड़ी झपकी आने लगती तो डर कर जाग जाता। थोड़ी नींद आती तो बड़े-बड़े महल-भवन, दुमंजिली-तिमंजिली अटारियाँ धाड़-धाड़ गिरने लगतीं। ढह चुकी दीवारें, गिरी छतों से लटक रहे गार्डर, शहतीर, बालियों तथा मिट्टी के ढेरों के बीच हाथियों, गैंडों जितने बड़े-बड़े और घोड़ों के से, अजीब सिरों वाले जानकर, धरती धमकाते दिखाई देते। वह किसी गिर चुके बड़े स्तम्भ की ओट में सहमा, इन खंडहरों में धूल उड़ाते, दहाड़ते, हिनहिनाते इन विशालकाय दैत्यों को देखता तो अचानक चारों ओर से गरजती तोपों की भयंकर आवाजें खंडहरों के धुएँ के बादलों से मिलकर अंधकार को अधिक भयावह बना देतीं।

......और इसी समय राख होते इन ऊँचे घोलरों (भवनों) और तोपों की असह्य गड़गड़ाहट से उसकी आँख खुल गई। कोठरी में भीतर भी अंध-गुबार तथा धुआँ ही धुआँ दिखाई दिया। साँस घुटने लगी तो आँखें फाड़े दीवार की ओर घूरता फिर उठकर बैठ गया।

   


प्रथम पृष्ठ

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book

A PHP Error was encountered

Severity: Notice

Message: Undefined index: mxx

Filename: partials/footer.php

Line Number: 7

hellothai